भीमा-कोरेगांव महज दो पक्षों के बीच तात्कालिक संघर्ष नहीं था, बल्कि इसके लिए लंबे वक्त से जमीन तैयार की जा रही थी. अब यह मसला महज जातिगत संघर्ष तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि राजनेताओं ने भी सियासी बिसात पर अपने मोहरे चलना शुरू कर दिए.
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भीमा-कोरेगांव हिंसा : क्या हुआ था 1 जनवरी 1818 की सुबह?
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