हमारे देश में अभिव्यक्ति की आजादी को भी पालतू बना दिया है. कई राजनीतिक लोग ही नहीं बल्कि बुद्धिजीवी कलाकार भी इसे ‘मीठा-मीठा गप और कड़वा कड़वा थू की तरह इस्तेमाल करते हैं.’ यानि जब तक अभिव्यक्ति आपकी मंशा के मुताबिक हो तब तक आजादी की बात की जाए और गर ऐसा न हो तो चुप्पी साध लें या पाला बदल लें.
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OPINION: 'द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर': अभिव्यक्ति की आज़ादी के नियम व शर्तें लागू
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