
इन आधुनिक तीर-धनुषों को खरीदने की क्षमता बच्चों में नहीं होती और वे राष्ट्रीय-अन्तरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में विफल हो जाते हैं. सरकार द्वारा भी इन बच्चों को किसी तरह के साधन और आर्थिक सहायता नहीं मिलती, जिससे कोल्हान की तीरंदाजी प्रतिभा यहीं के जंगलों और पहाड़ों में ही खो जाती है.
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