
फागुन के राति केहू तरी पुरान-धुरान दू-तीनि गो चदर साटि के काटि दिहले. बाकिर चइत आवते पछताए लगले. फेरू से रतिया खा ठांडा बढ़े लागल. उनुका फेरू कमर के जरूरत महसूस होखे लागल आ कमर खातिर से बाछि बेचे के परल आ कमर कीनले, त ई ह चइत के कहानी.
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