अधिकांश का कहना है कि उनके पास जॉब नहीं है. कुछ का कहना है कि उन्हें हिंसा के दौरान टूटे अपने घरों की मरम्मत करानी है.
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1 साल बाद भी पटरी पर नहीं आई दिल्ली दंगों में विधवा हुई महिलाओं की जिंदगी
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