
आदिवासियों के वाहा पर्व की मंगलवार को झारखंड में कई जगह धुम मची रही. इस पर्व में आदिवासी अपने देव स्थान जाहेरथान में साल फूलों से देवता की पूजा करते हैं. इस मौके पर सफेद और काली मुर्गी की बलि दी जाती है. आदिवासियों के मुताबिक ऐसा प्रकृति की पूजा करने के लिए होता है. जामताड़ा के विभिन्न आदिवासी गांव में वाहा पर्व को पूरे पारंपरिक ढंग से मनाया गया. इस खुशी के अवसर पर आदिवासी महिलाएं पारंपरिक वेशभूषा में सजधज कर वाहा गीत गाती हैं और मांदर के थाप पर झुमकर नाचती हैं. मिहिजाम थाना के केलाही गांव में यह मंजर देखने को मिला. यहां वाहा मनाया जा रहा है. यहां लोग पानी से होली खेल रहे थे. इस दौरान हंसी मजाक करने वाले संबंधियों पर ही पानी डाला जा रहा था. लेकिन कोई किसी तरह की अप्रिय घटना ना हो जाए, कोई गुस्सा ना हो जाए, इसलिए वाहा खेलने वालों पर समाज की पैनी नजर रहती है. वाहा का शुरूआत तबतक नहीं होता है, जब तक कि नायकी पवित्र साल के फूल महिलाओं के आंचल में नहीं डाल देते हैं. उसके बाद ही वाहा का अनूठा और संयमित खेल होता है. इस मौके पर बहन और बहनोई सहित दामाद को बुलाने की परंपरा है.
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